Guru Purnima (गुरुपुर्णिमा) का महत्व
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है. भारतवर्ष में कई विद्वान गुरु हुए हैं, किन्तु महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे, जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी.
सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है. सिख धर्म की एक प्रचलित कहावत निम्न है:
‘गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए'।।
क्या है मान्यता
कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को आदि गुरु वेद व्यास का जन्म हुआ था. उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. मगर गूढ़ अर्थों को देखना चाहिए क्योंकि आषाढ़ मास में आने वाली पूर्णिमा तो पता भी नहीं चलती है. आकाश में बादल घिरे हो सकते हैं और बहुत संभव है कि चंद्रमा के दर्शन तक न हो पाएं.
बिना चंद्रमा के कैसी पूर्णिमा! कभी कल्पना की जा सकती है? चंद्रमा की चंचल किरणों के बिना तो पूर्णिमा का अर्थ ही भला क्या रहेगा. अगर किसी पूर्णिमा का जिक्र होता है तो वह शरद पूर्णिमा का होता है तो फिर शरद की पूर्णिमा को क्यों न श्रेष्ठ माना जाए क्योंकि उस दिन चंद्रमा की पूर्णता मन मोह लेती है. मगर महत्व तो आषाढ़ पूर्णिमा का ही अधिक है क्योंकि इसका विशेष महत्व है.
आषाढ़ की पूर्णिमा ही क्यों है गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ की पूर्णिमा को चुनने के पीछे गहरा अर्थ है. अर्थ है कि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह. आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों. शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं. वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं. उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है. इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है! इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी. यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है.
गुरु पुर्णिमा पर्व का महत्व
जीवन में गुरु और शिक्षक के महत्व को आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व आदर्श है. व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा अंधविश्वास के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए.
गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए इस दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. सिख धर्म में इस पर्व का महत्व अधिक इस कारण है क्योंकि सिख इतिहास में उनके दस गुरुओं का बेहद महत्व रहा है.
"गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:"
अर्थात:- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है, ऐसे गुरु को हम प्रणाम करते हैं।
गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा।
गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती, जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है।
पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है।
इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है, गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है।
आत्मस्वरुप का ज्ञान पाने के अपने कर्त्तव्य की याद दिलाने वाला, मन को दैवी गुणों से विभूषित करनेवाला, सदगुरु के प्रेम और ज्ञान की गंगा में बारंबार डुबकी लगाने हेतु प्रोत्साहन देनेवाला जो पर्व है - वही है 'गुरु पूर्णिमा' ।
भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, १८ पुराणों और उपपुराणों की रचना की, ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया।
पंचम वेद 'महाभारत' की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया, तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया तभी से व्यासपूर्णिमा मनायी जा रही है।
इस दिन जो शिष्य अपने सदगुरु के श्रीचरणों में पहुँचकर संयम-श्रद्धा-भक्ति से उनका पूजन करता है उसे वर्षभर के पर्व मनाने का फल मिलता है।
साधक के लिये गुरुपूर्णिमा व्रत और तपस्या का दिन है, उस दिन साधक को चाहिये कि उपवास करे या दूध, फल अथवा अल्पाहार ले, अपने गुरु के द्वार जाकर गुरुदर्शन, गुरुसेवा और गुरु-सत्सन्ग का श्रवण करे।
जो शिष्य सदगुरु का पावन सान्निध्य पाकर आदर व श्रद्धा से सत्संग सुनता है, सत्संग-रस का पान करता है, उस शिष्य का प्रभाव अलौकिक होता है।
'श्रीयोगवाशिष्ठ महारामायण' में भी शिष्य से गुणों के विषय में श्री वशिष्ठजी महाराज करते हैः- "जिस शिष्य को गुरु के वचनों में श्रद्धा, विश्वास और सदभावना होती है उसका कल्याण अति शीघ्र होता है।"
( गुरु पुर्णिमा; व्यास पुर्णिमा महापर्व 09 जूलाई 2017 )