रेगर जाति वर्ण व्यवस्था

रैगर जाति में एक नहीं अनेकों झूंझार हुए हैं । झूंझार उसे कहते हैं जो युद्ध में लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त होता है । झूंझार योद्धा होता है जो युद्ध में हार कर लौटने की बजाय बहादुरी के साथ लड़ते हुए युद्ध स्थल में ही मरना श्रेष्ठ समझता है । रैगर जाति के झूंझारों का इतिहास देखने से यह प्रमाणित होता है कि रैगर एक बहादुर कौम है । वे क्षत्रियों की तरह ही हथियार उठा कर युद्ध में कूदे हैं और वीरता का परिचय देते हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए हैं । यह दुर्भाग्य की बात है कि इतिहासकारों ने रैगर झूंझारों को कहीं स्थान नहीं दिया । मगर रैगरों की बही भाटों की पोथियों में इनके पूरे प्रमाण उपलब्ध हैं । रैगर जाति में हुए कुछ झूंझारों का वर्णन निम्नानुसार हैं-सम्वत् 1172 में मानसहाय खटनावलिया युद्ध में लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए । सम्वत् 1232 में शेखावतों के युद्ध में ईशर खटनावलिया लड़ते हुए रण स्थल में खेत रहा । श्री वेणा कुरड़िया (निवासी- नागौर), अमरसिंह राठौड़ के समय में युद्ध में लड़ते हुए शत्रुओं द्वारा मारे गये । सम्वत् 1561 में श्री खेताजी कुरड़िया (निवासी पीपाड़) दरबार सुमेरसिंहजी के समय में हुए युद्ध में लड़ते हुए मारे गये । सम्वत् 1632 में श्री माणक बडारिया (निवासी- खेड़ा) किशनगढ़ के राठौड़ों और डोडी राजूतों के बीच हुए संघर्ष में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । सम्वत् 1153 में गुंजल सवांसिया (निवासी- दिल्ली) पृथ्वीराज और मुगलों के बीच हुए युद्ध में बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । दिल्ली में पुराने किले के पास वीर गुंजल की समाधि बनी हुई थी । हमीरा तगाया की कहानी ने तो रैगरों के सिर को ऊँचा कर दिया है । सम्वत् 1433 में खुमानराणा हालाहाड़ा के बीच जंग हई जिसमें हमीरा बहादुरी के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ । सम्वत् 1672 में धनजी जेलिया केलावा के युद्ध में लड़ते हुए शहीद हुए । सम्वत् 732 में बीजमेर मोणिया (निवासी- पीपलाद) मराठों के युद्ध में लड़ते हुए शहीद हुए ।कालूजी बंसीवाल (निवासी- बस्सी) ने सम्वत् 1303 में मुगलों के आक्रमणों में बड़ी बहादुरी के साथ लड़ते हुए प्राण गंवाए । सम्वत् 1613 में हेमा बंसीवाल (निवासी- बस्सी) सरवाड़ के मीरखां की लड़ाई में वीरगति को पाप्त हुए । चित्तौड़ निवासी शिवशंकर मण्डावरिया राजपूतों और मुगलों की लड़ाई में वीरता का प्रदर्शन करते हुए युद्ध में काम आया। गौरधन झाड़ोटिया गोगदव चौहान और मुगलों के बीच हुए युद्ध में लड़ते हुए मारा गये । सम्वत् 603 में राजू मोलपुरिया निवासी मालपुरा ने टौंक के बादशाह तथा जैसलमेर के भाटियों के बीच हुए युद्ध में बड़ी वीरता के साथ लड़ते हुए मरा और शूरमा कहलाया । वीरता की दृष्टि से रैगर युद्ध में दुश्मानों के छक्के छुड़ाने में किसी से पीछे नहीं रहे हैं । वीरता, त्याग, बलिदान तथा शौर्य की दृष्टि से रैगरों का इतिहास शानदार रहा है । रैगर हमेशा ही बहादुर कौम रही है ।
(साभार- चन्दनमल नवल कृत 'रैगर जाति : इतिहास एवं संस्कृति')

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